Navratri, a festival celebrating the divine feminine energy, reverberates with the devotion of millions across India. During these auspicious nine days, devotees invoke the blessings of Goddess Durga in her nine powerful forms. Each form is accompanied by a specific mantra and a Stuti Vandana, capturing the essence of the goddess’s divine attributes. In this blog post, I will share the significance of the nine forms of Goddess Durga, along with their corresponding mantras and Stuti Vandanas, guiding us on a spiritual journey of devotion and reverence.
नवरात्रि उत्सव के दौरान देवी दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों का सम्मान किया जाता है, एवं उन्हें पूजा जाता है; जिसे नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
माँ दुर्गा के नौ रूप और हर नाम में एक दैवीय शक्ति को पहचानना ही नवरात्रि मनाना है। असीम आनन्द और हर्षोल्लास के नौ दिनों का उचित समापन बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक पर्व दशहरा मनाने के साथ होता है। नवरात्रि पर्व की 9 रातें देवी माँ के 9 विभिन्न रूपों को समर्पित हैं जिसे नवदुर्गा भी कहा जाता है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
Form 1: Shailaputri – The Daughter of the Mountains
Shailaputri, the daughter of the mountains, is worshipped on the first day of Navratri. She represents the essence of nature and purity. Devotees seek her blessings for strength, stability, and determination.
नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना के साथ मां के प्रथम स्परुप शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है। राजा हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। ये वृषभ पर विराजती हैं इनके दाएं हाथ में त्रिशूल तो बाएं हाथ में कमल रहता है इनका स्वरुप बहुत मनमोहक लगता है। नवरात्रि के प्रथम दिन साधक का मन मूलाधार चक्र में स्थापित होता है। नवरात्रि की प्रतिपदा को पहनें सफेद रंग के कपड़े।
माँ दुर्गा का पहला ईश्वरीय स्वरुप शैलपुत्री है। शैल का अर्थ है शिखर। शास्त्रों में शैलपुत्री को पर्वत (शिखर) की बेटी के नाम से जाना जाता है। योग के मार्ग पर वास्तविक अर्थ है – चेतना का सर्वोच्चतम स्थान। यह बहुत दिलचस्प है कि जब ऊर्जा अपने चरम स्तर पर होती है तभी आप इसका अनुभव कर सकते हैं। इससे पहले कि यह अपने चरम स्तर पर न पहुँच जाए तब तक आप इसे समझ नहीं सकते क्योंकि चेतना की अवस्था का यह सर्वोत्तम स्थान है जो ऊर्जा के शिखर से उत्पन्न हुआ है। यहाँ पर शिखर का मतलब है, हमारे गहरे अनुभव या गहन भावनाओं का सर्वोच्चतम स्थान। जब आप किसी भी अनुभव या भावना के शिखर तक पहुँचते हैं तो आप दिव्य चेतना के उद्भव का अनुभव करते हैं, क्योंकि यह चेतना का सर्वोत्तम शिखर है। शैलपुत्री का यही वास्तविक अर्थ है।
माँ शैलपुत्री की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम: मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के पहले स्वरुप माँ शैलपुत्री की आराधना कर सकते हैं।
Mantra:
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
Om Devi Shailaputryai Namah॥
Stuti Vandana:
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
Form 2: Brahmacharini – The Ascetic Goddess
Brahmacharini, the ascetic goddess, symbolizes penance and devotion. She signifies bliss, peace, and calmness. Devotees worship her to gain spiritual wisdom and inner strength.
नवरात्रि में दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इनके नाम का अर्थ तप का आचरण करने वाली है। इनका स्वरुप तेजमय और अत्यंत भव्य है। ये अपने दाएं हाथ में कमंडल दो बाएं हाथ में माला धारण करती हैं। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में रहता है। नवरात्रि की द्वितीया को पहनें लाल रंग के कपड़े। लाल रंग, क्रिया और शक्ति का प्रतीक है।
यहाँ ब्रह्म का क्या अर्थ है ?
ब्रह्मचारिणी का अर्थ है वह जो असीम, अनन्त में विद्यमान, गतिमान है। एक ऊर्जा जो न तो जड़ न ही निष्क्रिय है, किन्तु वह जो अनन्त में विचरण करती है। यह बात समझना अति महत्वपूर्ण है – एक है गतिमान होना, दूसरा विद्यमान होना। यही ब्रह्मचर्य का अर्थ है। इसका अर्थ यह भी है कि तुच्छता और निम्नता में न रहना अपितु पूर्णता से रहना। कौमार्यावस्था ब्रह्मचर्य का पर्यायवाची है क्योंकि उसमें आप एक सम्पूर्णता के समक्ष हैं। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी सर्वव्यापक चेतना है।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’ मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के दूसरे स्वरुप माँ ब्रह्मचारिणी का आवाहन कर सकते हैं ।
Mantra:
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
Om Devi Brahmacharinyai Namah॥
Stuti Vandana:
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
Form 3: Chandraghanta – The Goddess with a Crescent Moon
Shailaputri, the daughter of the mountains, is worshipped on the first day of Navratri. She represents the essence of nature and purity. Devotees seek her blessings for strength, stability, and determination.
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघण्टा की पूजा होती है। मां की पूजा से जीवन में सफलता मिलती है। मां के मस्तक पर घंटे के आकार का चंद्रमा है, इसलिए उन्हें चंद्रघण्टा कहते हैं। मां चंद्रघण्टा का रूप अलौकिक, तेजस्वी और मम्तामयी है। मां के इस रूप की पूजा करने से आपको जीवन के हर क्षेत्र में भरपूर कामयाबी प्राप्त होती है। मां के मस्तक पर अर्द्धचंद्र के आकार का घंटा शोभायमान है, इसलिए देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनकी पूजा में शंख और घंटों के साथ पूजा करने से मां प्रसन्न होती हैं और कृपा बरसाती हैं। नवरात्रि की तृतीया को पहनें शाही नीले रंग के कपड़े। रॉयल ब्लू शांति और गहरे नीले आकाश की गहराई का प्रतीक है। यह देवी के पास ज्ञान की गहराई का प्रतिनिधित्व है।
चन्द्रघण्टा शब्द का क्या अर्थ है?
चन्द्रमा हमारे मन का प्रतीक है। मन का अपना ही उतार चढ़ाव लगा रहता है। प्राय: हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं – सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिए और अपने मन को स्वच्छ करने के लिए संघर्ष करते हैं। यह आपकी छाया समान है।
जैसे ही हमारे मन में नकरात्मक भाव व विचार आते हैं तो हम निरुत्साहित और अशांत महसूस करते हैं। हम विभिन्न तरीकों से इनसे पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं पर यह मात्र कुछ समय के लिए ही काम करता है। कुछ समय पश्चात वही विचार फिर हमें घेर लेते हैं और वापस वहीं पहुँच जाते हैं जहाँ से हमने शुरुआत की थी। अतः इन विचारों से पीछा छुड़ाने के संघर्ष में न फँसे। ‘चंद्र’ हमारी बदलती हुई भावनाओं, विचारों का प्रतीक है (ठीक वैसे ही जैसे चन्द्रमा घटता व बढ़ता रहता है)। ‘घंटा’ का अर्थ है जैसे मंदिर के घण्टे-घड़ियाल। आप मंदिर के घण्टे-घड़ियाल को किसी भी प्रकार बजाएँ, उसमे से एक ही ध्वनि आती है। इसी प्रकार एक अस्तव्यस्त मन जो विभिन्न विचारों, भावों में उलझा रहता है, जब एकाग्र होकर ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाता है, तब ऊपर उठती हुई दैवीय शक्ति का उदय होता है – और यही चन्द्रघण्टा का अर्थ है।
एक ऐसी स्थिति जिस में हमारा अस्तव्यस्त मन एकाग्रचित्त हो जाता है; अपने मन से भागे नहीं क्योंकि यह मन एक प्रकार से दैवीय रूप का प्रतीक या अभिव्यक्ति है। यही दैवीय रूप दुःख, विपत्ति, भूख और यहाँ तक कि शान्ति में भी उपस्थित है। इसका सार यह है कि सबको एक साथ लेकर चलें – चाहे खुशी हो या दुःख – सब विचारों, भावनाओं को एकत्रित करते हुए एक विशाल घण्टे-घड़ियाल के नाद की तरह। देवी के इस नाम ‘चन्द्रघण्टा’ का यही अर्थ है और तृतीय नवरात्रि के उपलक्ष्य में इसे मनाया जाता है।
माँ चंद्रघंटा की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:’ मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के तीसरे स्वरुप माँ चंद्रघंटा का आवाहन कर सकते हैं ।
Mantra:
ॐ देवी चंद्रघण्टायै नमः॥
Om Devi Chandraghantayai Namah॥
Stuti Vandana:
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
Form 4: Kushmanda – The Creator of the Universe
Kushmanda, the creator of the universe, is worshipped on the fourth day. She is believed to reside in the sun and provides light and energy to the cosmos. Devotees seek her blessings for vitality, health, and abundance.
मां के चौथे स्वरुप को कूष्मांडा कहा जाता है। कहते है जब सृष्टि में चारों ओर अंधकार था, तब इन्होंने ही अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। जिसके कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। मां कूष्मांडा के पूजन के दिन साधक का मन अनाहत चक्र में स्थापित होता है। नवरात्रि की चतुर्थी को पहनें पीले रंग के कपड़े। पीला रंग खुशी और जयकार का रंग है।
कूष्माण्डा का अर्थ क्या है?
कूष्माण्डा का संस्कृत में अर्थ होता है लौकी/कद्दू। लौकी, कद्दू गोलाकार है, अतः यहाँ इसका अर्थ प्राणशक्ति से है – वह प्राणशक्ति जो पूर्ण, एक गोलाकार, वृत्त की भांति है।
लौकी, कद्दू आपकी प्राणशक्ति, बुद्धिमत्ता और शक्ति को बढ़ाते हैं। लौकी, कद्दू के गुण के बारे में ऐसा कहा गया है कि यह प्राणों को अपने अंदर सोखते हैं और साथ ही प्राणों का प्रसार भी करते हैं। यह इस धरती पर सबसे अधिक प्राणवान और ऊर्जा प्रदान करने वाली शाक, सब्जी है। जिस प्रकार अश्वथ का वृक्ष 24 घंटे ऑक्सीजन देता है उसी प्रकार लौकी, कद्दू ऊर्जा को ग्रहण या अवशोषित कर उसका प्रसार करते हैं।
सम्पूर्ण सृष्टि – प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष , अभिव्यक्त व अनभिव्यक्त – एक बड़ी गेंद , गोलाकार कद्दू के समान है। इसमें हर प्रकार की विविधता पाई जाती है – छोटे से बड़े तक।
‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘ष् ’ का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला – सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऊर्जा का संचार छोटे से बड़े में होता है। यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा; यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है। इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने का और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है, जिसकी व्याख्या देवी कूष्मांडा करती हैं। इसका अर्थ यह भी है कि देवी माँ हमारे अंदर प्राणशक्ति के रूप में प्रकट रहती हैं।
माँ कूष्मांडा की पूजा में कौन से मन्त्र का जाप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के चौथे स्वरुप माँ कूष्मांडा की आराधना कर सकते हैं।
Mantra:
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
Om Devi Kushmandayai Namah॥
Stuti Vandana:
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
Form 5: Skandamata – The Mother of Lord Skanda
Skandamata, the mother of Lord Skanda (Kartikeya), is worshipped on the fifth day. She represents the nurturing and caring aspects of motherhood. Devotees pray to her for wisdom and the strength to protect their children.
मां दुर्गा की पंचम स्वरुप को स्कंद माता के नाम से जाना जाता है। मां की चार भुजाएं हैं दांयी तरफ की ऊपर वाली भुजा से मां अपनी गोद में स्कंद यानि कुमार कार्तिकेय को पकड़े हुए हैं, एवं नीचे वाली भुजा में कमल को धारण किया है तो वहीं बांयी ओर की ऊपर वाली भुजा से मां आशीर्वदा मुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में मां ने कमल के पुष्प को धारण किया है। मां का यह स्परुप परम सुखों को देने वाला है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थापित रहता है। नवरात्रि की पंचमी को पहनें हरे रंग के कपड़े। हरा रंग हर क्षेत्र में सफलता के लिए आवश्यक वृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है।
भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक हैं। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वह दैवीय शक्ति हैं, जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती हैं – वह जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं।
शिव तत्व आनंदमय, सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी है। ऐसी मान्यता है कि देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब शिव तत्व का मिलन इन त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कन्द का जन्म होता है। स्कंदमाता ज्ञान और क्रिया के स्रोत, आरम्भ का प्रतीक है। इसे हम क्रियात्मक ज्ञान अथवा सही ज्ञान से प्रेरित क्रिया या कर्म भी कह सकते हैं।
प्रायः ऐसा देखा गया है कि ज्ञान तो है, किंतु उसका कुछ प्रयोजन या क्रियात्मक प्रयोग नहीं होता। किन्तु ज्ञान ऐसा भी है, जिसका ठोस प्रयोजन, लाभ है, जिसे क्रिया द्वारा अर्जित किया जाता है। स्कन्द सही व्यवहारिक ज्ञान और क्रिया के एक साथ होने का प्रतीक है। स्कन्द तत्व मातृ देवी का एक और रूप है।
हम अक्सर कहते हैं, कि ब्रह्म सर्वत्र, सर्वव्यापी है, किंतु जब आपके सामने कोई चुनौती या मुश्किल स्थिति आती है, तब आप क्या करते हैं ? तब आप किस प्रकार कौन सा ज्ञान लागू करेंगे या प्रयोग में लाएँगे? समस्या या मुश्किल स्थिति में आपको क्रियात्मक होना पड़ेगा। अतः जब आपका कर्म सही व्यवहारिक ज्ञान से लिप्त होता है तब स्कन्द तत्व का उदय होता है। और देवी दुर्गा स्कन्द तत्व की माता हैं।
स्कंदमाता की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमतायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के पाँचवें स्वरुप माँ स्कंदमाता का आवाहन कर सकते हैं ।
Mantra:
ॐ देवी स्कंदमातायै नमः॥
Om Devi Skandamatayai Namah॥
Stuti Vandana:
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
Form 6: Katyayani – The Warrior Goddess
Katyayani, the warrior goddess, is worshipped on the sixth day. She is known for her bravery and fierce form. Devotees seek her blessings for courage, victory over enemies, and protection from harm.
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी के पूजन का प्रावधान होता है। इन्होंने कात्यायन ऋषि के यहां कन्या के रुप में जन्म लिया था। जिसके कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। नवरात्रि के छठे दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थापित रहता है। इस दिन साधक को औलोकिक तेज की प्राप्ति होती है। नवरात्रि की षष्ठी को पहनें स्लेटी रंग के कपड़े। ग्रे रंग संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है।
हमारे सामने जो कुछ भी घटित होता है, जिसे हम प्रपंच का नाम देते हैं, जरूरी नहीं कि वह सब हमें दिखाई दे। वह जो अदृश्य है, जिसे हमारी इन्द्रियाँ अनुभव नहीं कर सकती वह हमारी कल्पना से बहुत परे और विशाल है।
सूक्ष्म जगत जो अदृश्य, अव्यक्त है, उसकी सत्ता माँ कात्यायनी चलाती हैं। वह अपने इस रूप में उन सब की सूचक हैं, जो अदृश्य या समझ के परे है। माँ कात्यायनी दिव्यता के अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक हैं।
क्रोध किस प्रकार से सकारात्मक बल का प्रतीक है और कब यह नकारात्मक आसुरी शक्ति का प्रतीक बन जाता है? इन दोनों में तो बहुत गहरा भेद है। सकारात्मकता के साथ किया हुआ क्रोध बुद्धिमत्ता से जुड़ा होता है, और वहीं नकारात्मकता से लिप्त क्रोध भावनाओं और स्वार्थ से भरा होता है। सकारात्मक क्रोध एक प्रौढ़ बुद्धि से उत्पन्न होता है। क्रोध अगर अज्ञान व अन्याय के प्रति है तो वह उचित है। अधिकतर जो कोई भी क्रोधित होता है वह सोचता है कि उसका क्रोध किसी अन्याय के प्रति है अतः वह उचित है! किंतु अगर आप गहराई में, सूक्ष्मता से देखेंगे तो अनुभव करेंगे कि ऐसा वास्तव में नहीं है। इन स्थितियों में क्रोध एक बंधन बन जाता है। अतः सकारात्मक क्रोध जो अज्ञान, अन्याय के प्रति है, वह माँ कात्यायनी का प्रतीक है।
सभी प्राकृतिक विपदाओं का संबंध माँ के दिव्य कात्यायनी रूप से है। वह क्रोध के उस रूप का प्रतीक हैं जो सृष्टि में सृजनता, सत्य और धर्म की स्थापना करती हैं। माँ का दिव्य कात्यायनी रूप अव्यक्त के सूक्ष्म जगत में नकारात्मकता का विनाश कर धर्म की स्थापना करता है। ऐसा कहा जाता है कि ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है,जबकि अज्ञानी का प्रेम भी हानिप्रद हो सकता है। इस प्रकार माँ कात्यायनी क्रोध का वह रूप है, जो सब प्रकार की नकारात्मकता को समाप्त कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
माँ कात्यायनी की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के छठें स्वरुप माँ कात्यायनी का आवाहन कर सकते हैं ।
Mantra:
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
Om Devi Katyayanyai Namah॥
Stuti Vandana:
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
Form 7: Kalaratri – The Dark and Fierce Goddess
Kalaratri, the dark and fierce goddess, is worshipped on the seventh day. She is a destroyer of ignorance and negativity. Devotees pray to her for liberation and removal of obstacles in life.
मां कालरात्रि का पूजन नवरात्रि के सप्तम दिन किया जाता है। इनक स्वरुप देखने में भयानक है, परंतु इनका यह स्वरुप अत्यंत शुभ फल देने वाला कल्याणकारी है। मां के इस स्वरुप से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। इनकी पूजा वाले दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थापित होता है। साधक समस्त तरह के भय से मुक्त हो जाता है और उसके लिए समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। नवरात्रि की सप्तमी को पहनें नारंगी रंग के कपड़े। संतरा रंग प्रकाश और ऊर्जा का प्रतीक है।
यह माँ का अति भयावह व उग्र रूप है। सम्पूर्ण सृष्टि में इस रूप से अधिक भयावह और कोई दूसरा नहीं। किन्तु तब भी यह रूप मातृत्व को समर्पित है। देवी माँ का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है।
माँ कालरात्रि की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम: जप से आप माँ दुर्गा के सातवें स्वरुप माँ कालरात्रि की पूजा कर सकते हैं
Mantra:
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
Om Devi Kalaratryai Namah॥
Stuti Vandana:
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
Form 8: MahaGauri – The Goddess of Purity and Serenity
Mahagauri, the goddess of purity and serenity, is worshipped on the eighth day. She symbolizes peace and compassion. Devotees seek her blessings for spiritual growth, inner purity, and a peaceful life.
नवरात्रि के आंठवे दिन मां महागौरी का पूजन किया जाता है। मां महागौरी के पूजन से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। इस स्वरुप में मां गौर वर्ण में हैं इसलिए इन्हें गौरी की संज्ञा दी गई है। मां महागौरी को अन्नपूर्णा भी कहा जाता है। इनकी पूजा वाले दिन साधक का मन सोम चक्र में स्थापित होता है। नवरात्रि की अष्टमी को पहनें मोरपंखी हरे रंग के कपड़े। मोरपंखी हरा विशिष्टता और वैयक्तिकता का प्रतिनिधित्व करता है।
सौन्दर्य का प्रतीक : माँ महागौरी
महागौरी का अर्थ है – वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, प्रकाशमान है – पूर्ण रूप से सौंदर्य में डूबा हुआ है। प्रकृति के दो छोर हैं – एक माँ कालरात्रि जो अति भयावह, प्रलय के समान हैं, और दूसरा माँ महागौरी जो अति सौन्दर्यवान, देदीप्यमान, शांत हैं – पूर्णत: करुणामयी, सबको आशीर्वाद देती हुईं। यह वह रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है।
यह भौतिक नहीं, बल्कि लोक से परे आलौकिक रूप है, सूक्ष्म से भी सूक्ष्म रूप। इसकी अनुभूति के लिए पहला कदम ध्यान में बैठना है। ध्यान में आप ब्रह्मांड को अनुभव करते हैं। इसलिए बुद्ध ने कहा है, “आप बस देवियों के विषय में बात ही करते हैं। जरा बैठिए और ध्यान करिए। ईश्वर के विषय में न सोचिए। शून्यता में जाइए, अपने भीतर। एक बार आप वहां पहुँच गए, तो अगला कदम वह है जहाँ आपको विभिन्न मंत्र, विभिन्न शक्तियाँ दिखाई देंगी, वह सभी जागृत होंगी।”
माँ महागौरी की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के आठवें स्वरुप माँ महागौरी की पूजा कर सकते हैं ।
Mantra:
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
Om Devi Mahagouryai Namah॥
Stuti Vandana:
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
Form 9: Siddhidatri – The Bestower of Supernatural Powers
Siddhidatri, the bestower of supernatural powers, is worshipped on the ninth day. She grants knowledge, wisdom, and fulfillment of desires. Devotees pray to her for spiritual enlightenment and self-realization.
नवरात्रि के समापन या नवमी तिथि वाले दिन मां सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। मां सिद्धिदात्री समस्त कार्यों में सिद्धि प्रदान करने वाली हैं। इनके पूजन से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इन्हीं की कृपा से ही शिव जी को समस्त सिद्धियां प्राप्त हुई थी। मां सिद्धिदात्री से ही शिव जी अर्द्धनारीश्वर कहलाए। नवरात्रि की नवमी को पहनें गुलाबी रंग के कपड़े। गुलाबी रंग प्यार, स्नेह और एकता का प्रतीक है।
माँ सिद्धिदात्री आपको जीवन में अद्भुत सिद्धि, क्षमता प्रदान करती हैं ताकि आप सब कुछ पूर्णता के साथ कर सकें। सिद्धि का क्या अर्थ है? सिद्धि, सम्पूर्णता का अर्थ है – विचार आने से पूर्व ही काम का हो जाना। आपके विचारमात्र से ही, बिना किसी कार्य किए आपकी इच्छा का पूर्ण हो जाना, यही सिद्धि है।
आपके वचन सत्य हो जाएँ और सबकी भलाई के लिए हों। आप किसी भी कार्य को करें वह सम्पूर्ण हो जाए – यही सिद्धि है। सिद्धि आपके जीवन के हर स्तर में सम्पूर्णता प्रदान करती है। यही देवी सिद्धिदात्री की महत्ता है।
माँ सिद्धिदात्री की पूजा में कौन से मन्त्र का जप करें?
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के नौवें स्वरुप माँ सिद्धिदात्री की पूजा कर सकते हैं ।
Mantra:
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
Om Devi Siddhidatryai Namah॥
Stuti Vandana:
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
For the past 15 years, I’ve seen information on the 9 forms of Durga scattered across the web. That’s why, through this post, I’ve compiled all the essential details, ensuring that during Navratri, everyone can fully understand and appreciate each form of the goddess. For me during Navratri, as we chant these mantras and recite the Stuti Vandanas with devotion, we connect with the divine energies of Goddess Durga.
Each form, mantra, and hymn encapsulates a unique facet of the goddess’s power, wisdom, and grace. May these sacred invocations guide us on a spiritual journey, filling our hearts with devotion and our lives with blessings. As we celebrate the divine feminine during Navratri, I encourage you all to immerse yourselves in the profound energy of these nine forms, embracing their divine presence with reverence and love.
#AskDushyant
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